बिल्डर हुआ दिवालिया तो नहीं डूबेगा घर खरीदारों का पैसा।
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रायपुर, 10 अगस्त
अब अगर कोई भी रियल एस्टेट कंपनी खुद को दिवालिया घोषित करती है तो उसकी संपत्ति की नीलामी में घर खरीददारों को भी अपना हिस्सा मिलेगा।घर खरीदारों को राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड संशोधन को वैध ठहराया है। कुछ रियल स्टेट कंपनियों ने इस संशोधन को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। बिल में कंपनियों की दिवालिया प्रक्रिया पूरी करने के लिए तय समयसीमा को 270 से बढ़ाकर 330 करने का भी प्रावधान किया गया है। उच्चतम न्यायालय ने इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड ( आईबीसी ) यानी दिवालिया एवं ऋण शोधन अक्षमता संशोधन कानून को बरकरार रखते हुए घर खरीदारों को बड़ी राहत दी है। इसके साथ ही अदालत ने संशोधनों को वैध करार देते हुए फ्लैट खरीदारों को वित्तीय लेनदार (कर्जदाता) का दर्जा बरकरार रखा है। इससे आम लोगों को धोखा मिलने की स्थिति में राहत मिलेगी।
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गौरतलब है कि पूरे देश में कई रियल एस्टेट कंपनियां ऐसी हैं, जिन्होंने लोगों को घर देने का वादा तो किया लेकिन बीच राह मे हाथ खड़े कर दिया। ऐसी कंपनियां खुद को नुकसान में बताकर दिवालिया घोषित हो गईं।इसके बाद कार्रवाई के तौर पर ऐसी कंपनियों और उनके मालिकों की संपत्तियां जब्त की जाती हैं।पहले जब्त की गई संपत्ति का पूरा पैसा बैंक को मिलता था, लेकिन अब घर खरीदने वाले लोगों को भी इसमें से हिस्सा दिया जाएगा।कानून में बदलाव के खिलाफ सुपरटेक, एम्मार, एटीएस, अंसल, वेव समेत करीब 180 बिल्डर कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उनका कहना था कि ये बदलाव रियल एस्टेट सेक्टर को नुकसान पहुंचाएगा।इससे निर्माण क्षेत्र में लगी कंपनियों का काम कर पाना मुश्किल हो जाएगा।लेकिन जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने उनकी दलीलों को ठुकरा दिया।पीठ ने माना है कि छोटे फ्लैट निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए कानून में किया गया संशोधन सही है।
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पीठ ने पिछले साल आईबीसी में धारा 5 (8) (एफ) जोड़ने को सही ठहराया है। पीठ ने कहा कि रियल एस्टेट सेक्टर के नियमन के लिए बने रेरा एक्ट को आईबीसी के संशोधनों के साथ पढ़ा जाना चाहिए। अगर किसी केस में दोनों कानूनों के प्रावधानों में कोई विरोधाभास मिलता है तो आईबीसी के संशोधित प्रावधान लागू होंगे। पीठ ने घर खरीदारों को डिफ़ॉल्टर होने वाले बिल्डरों के खिलाफ दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए और रिफंड के लिए एनसीएलटी में आवेदन दायर करने की अनुमति दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वास्तविक फ्लैट खरीदार बिल्डर के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की मांग कर सकते हैं। अदालत ने केंद्र को इसके संबंध में आवश्यक कदम उठाकर अदालत में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। पीठ ने कहा कि रियल एस्टेट कंपनियों के खिलाफ आवश्यकतानुसाररेरा प्राधिकरण, एनसीएलटी और एनसीडीआरसी के समक्ष घर खरीदारों को कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है। 3 महीने के भीतर केंद्र रेरा के तहत प्राधिकारी नियुक्त करे।
दरअसल पिछले साल संसद ने ये संशोधन पास किया था जिसमें घर खरीदार को दिवालिया घोषित कंपनी के ऋणदाता माना गया। कुछ रियल स्टेट कंपनियों ने इस संशोधन को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। बिल में कंपनियों की दिवालिया प्रक्रिया पूरी करने के लिए तय समयसीमा को 270 से बढ़ाकर 330 करने का भी प्रावधान किया गया है। अब दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के आवेदन के समय ही उसके पूरे करने की समय सीमा तय होगी। साथ ही वित्तीय लेनदारों के संकट का भी निवारण किया जाएगा।
पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि एनसीएलटी सिर्फ वास्तविक और सही फ्लैट निवेशकों की ही याचिका पर विचार करे. किसी अर्जी पर विचार करने से पहले देखा जाए कि अर्जी दायर करने वाला क्या वाकई पीड़ित है। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये महज कंपनी को परेशान करने की कोशिश है।याचिका स्वीकार करने से पहले बिल्डर कंपनी को भी जवाब देने का मौका दिया जाए।